10th class social science subjective question : वसे स्टूडेंट जो Bihar Board Class 10th की तैयारी हैं। उन सभी छात्रों के लिए यहाँ पर राजनीतिक शास्त्र Political Science का कुछ लॉन्ग टाइप का क्वेश्चन दिया गया है।
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लोकतंत्र की चुनौतियाँ |
Class 10 sst long type subjective Question
1. भारतीय लोकतंत्र की दो चुनौतियों का वर्णन करें।
उत्तर ⇒ भारतीय लोकतंत्र के समक्ष दो महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं- लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती एवं लोकतंत्र को सशक्त बनाने की चुनौती। लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती का अर्थ ही होता है कि सत्ता में साझेदारी को विस्तृत बनाया जाए। इसी उद्देश्य से विकेंद्रीकरण के सिद्धांत को गले लगाया जाता है। सरकार की सत्ता को कई स्तरों पर बाँट दिया जाता हैं—केंद्र, राज्य तथा स्थानीय प्रशासनिक इकाइयाँ। सभी स्तर की संस्थाओं को लोकतांत्रिक बनाने की आवश्यकता है।
भारतीय लोकतंत्र के सामने विकेंद्रीकरण के सिद्धांत को सफल बनाने की चुनौती है। साथ ही, सत्ता में साझेदारी को विस्तृत बनाने के लिए वंश, लिंग, जाति, धर्म, संप्रदाय, भाषा, स्थान आदि के आधार पर भेदभाव मिटाने की चुनौती है। इसके लिए भारत में अनेक प्रयास किए गए हैं। पंचायती राज की स्थापना की गई है। लोगों की दिलचस्पी शासन कार्य में पैदा की जा रही है। सत्ता में साझेदारी को विस्तृत करने के लिए पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को तैंतीस प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। बिहार की पंचायती राज की संस्थाओं में इस आरक्षण का प्रतिशत 50 कर दिया गया है।
2. भ्रष्टाचार लोकतंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। कैसे ?
उत्तर ⇒ आज दुनिया में कमोवेश हर जगह से भ्रष्टाचार, अपराध, घोटाले इत्यादि की खबरें सुनने को मिलती हैं। यह आज किसी भी लोकतंत्र के लिए विकराल समस्या के रूप में सामने प्रकट हुई है। प्रत्येक दिन कोई न कोई समाचार इससे संबंधित अवश्य मिलता है। लोगों की मानसिकता हमें बहुत पैसे कमाने हैं, नये मकान, गाड़ियाँ, इत्यादि लेने हैं, इन चीजों को और बढ़ावा दे रहा है। दहेज जैसी सामाजिक कुरीतियाँ भी इसके लिए बहुत हद तक जिम्मेवार हैं। शादी-विवाह के लिए दहेज इकट्ठा करने के चक्कर में रिश्वत लेने या घोटाले में लोग बेहिचक शामिल हो जाते हैं। सरकार ने इसे समाप्त करने के लिए अनेक प्रयास किए हैं। जनलोकपाल विधेयक इसी दिशा में एक सार्थक प्रयास है।
3. बिहार में लोकतंत्र की जड़ें कितनी गहरी हैं ?
उत्तर ⇒ बिहार से लोकतंत्र का रिश्ता काफी पुराना है। लोकतंत्र की शुरुआत बिहार के लिच्छवी से हुई थी। तब से लेकर आजतक लोकतंत्र परिपक्व होता गया और इसका विस्तार होता गया। बिहार में लोकतंत्र की जड़ें काफी मजबूत हैं। बिहार में स्वस्थ लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था स्थापित है। लोक सेवकों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए सूचना का अधिकार कानून बिहार में भी लागू है। सरकार ने दलितों एवं वंचितों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए महादलित आयोग बनाया है। महिलाएँ भी पंचायतों एवं नगर निकायों में पचास प्रतिशत आरक्षण का लाभ उठाकर शासन में भागीदारी सुनिश्चित कर रही हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि बिहार में लोकतंत्र की जड़ें बहुत गहरी हैं।
4. लोकतंत्र में विपक्षी (विरोधी पक्ष की भूमिका का उल्लेख करें।
उत्तर ⇒ चुनाव हारने वाले दल जो सरकार बनाने में असफल रहते हैं, विरोधी पक्ष की भूमिका निभाते हैं तथा वे सरकार के कामकाज, नीतियों तथा असफलताओं की आलोचना करने का महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। विरोधी दल सदन में कुछ विधियों का प्रयोग करते हैं। जैसे— अविश्वास प्रस्ताव और ध्यानाकर्षण। विधायिका से बाहर भी वे सरकार की संगठित आलोचना जारी रखर हैं। विरोधी दल का काम विरोध करना, पोल खोलना तथा सत्ता से उतारना माना जाता है। इस प्रकार उनका उद्देश्य देश में एक बेहतर शासन सुनिश्चित करना है।
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5. गठबंधन की राजनीति कैसे लोकतंत्र को प्रभावित करती है?
उत्तर ⇒ चुनाव में स्पष्ट बहुमत नहीं आने पर सरकार बनाने के लिए छोटी-छोटी क्षेत्रीय पार्टियों का आपस में गठबंधन करना, वैसे उम्मीदवारों को चुन लिया जाना, जो दागी प्रवृत्ति या आपराधिक पृष्ठभूमि के होते हैं, यह लोकतंत्र के लिए अलग ही चुनौती हैं। गठबंधन में शामिल राजनीतिक दल अपनी आकांक्षाओं और लाभों की भावनाओं के मद्देनजर ही गठबंधन करने के लिए प्रेरित होते हैं, जिससे प्रशासन पर सरकार की पकड़ ढीली हो जाती है।
गठबंधन में राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि सरकार के कार्यक्रमों, कार्यों एवं नीतियों में हस्तक्षेप करते हैं जिससे सरकार को कल्याणकारी कामों में मुश्किल आती है। इससे काम-काज सुचारु रूप से चलाना मुश्किल हो जाता है। इस प्रकार गठबंधन की राजनीति लोकतंत्र को प्रभावित करती है।
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6. भारतीय लोकतंत्र की महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का संक्षेप में उल्लेख करें तथा उनके सुधार के उपाय बताएँ।
उत्तर ⇒ भारतीय लोकतंत्र के समक्ष दो महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं-लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती एवं लोकतंत्र को सशक्त बनाने की चुनौती। लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती का अर्थ ही होता है कि सत्ता में साझेदारी को विस्तृत बनाया जाए। इसी उद्देश्य से विकेंद्रीकरण के सिद्धांत को गले लगाया जाता है। सरकार की सत्ता को कई स्तरों पर बाँट दिया जाता हैं केंद्र, राज्य तथा स्थानीय प्रशासनिक इकाइयाँ। सभी स्तर की संस्थाओं को लोकतांत्रिक बनाने की आवश्यकता है। 10th class social science subjective question
भारतीय लोकतंत्र के सामने विकेंद्रीकरण के सिद्धांत को सफल बनाने की चुनौती है। साथ ही, सत्ता में साझेदारी को विस्तत बनाने के लिए वंश, लिंग, जाति, धर्म, संप्रदाय भाषा. स्थान आदि के आधार पर भेदभाव मिटाने की चुनौती है। इसके लिए भारत में अनेक प्रयास किए गए हैं। पंचायती राज की स्थापना की गई है। लोगों की दिलचस्पी शासन कार्य में पैदा की जा रही है। सत्ता में साझेदारी को विस्तृत करने के लिए पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को तैंतीस प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। बिहार की पंचायती राज की संस्थाओं में इस आरक्षण का प्रतिशत 50 कर दिया गया है।
7. भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है?
उत्तर ⇒ यद्यपि मनुष्य जाति की आबादी में महिलाओं की संख्या आधी है, पर सार्वजनिक जीवन में खासकर राजनीति में उनकी भूमिका नगण्य है। पहले सिर्फ पुरुष वर्ग को ही सार्वजनिक मामलों में भागीदारी करने, वोट देने या सार्वजनिक पदों के लिए चुनाव लड़ने की अनुमति थी। सार्वजनिक जीवन में हिस्सेदारी हेतु महिलाओं को काफी मेहनत करनी पड़ी। महिलाओं के प्रति समाज के घटिया सोच के कारण ही महिला आन्दोलन की शुरुआत हुई। महिला आंदोलन की मुख्य माँगों में सत्ता में भागीदारी की माँग सर्वोपरि रही है। औरतों ने सोचना शुरू कर दिया कि जब तक
औरतों का सत्ता पर नियंत्रण नहीं होगा तब तक इस समस्या का निपटारा नहीं होगा। फलतः राजनीतिक गलियारों में इस बात पर बहस छिड़ गयी कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने का उत्तम तरीका यह होगा कि चुने हुए प्रतिनिधि की हिस्सेदारी बढ़ायी जाए। यद्यपि भारत के लोकसभा में महिला प्रतिनिधियों की संख्या 65 हो गई। फिर भी इसका प्रतिशत 11 के नीचे ही हैं। आज भी आम परिवार की महिलाओं को सांसद या विधायक बनने का अवसर क्षीण है। महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना लोकतंत्र के लिए शुभ होगा। भारत में हाल में महिलाओं को विधायिका में 33 प्रतिशत आरक्षण देने की बात संसद में पास हो चुकी है।
8. बिहार की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी लोकतंत्र के विकास में कहाँ तक सहायक है ?
उत्तर ⇒ बिहार की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी सबसे कम है। इसका सबसे बड़ा कारण है अशिक्षा जो बिहार में सिर्फ 47 प्रतिशत है। परिणामस्वरूप यहा का जनता राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को सही अर्थों में समझ नहीं पाते।लोकतंत्र के विकास में यह कितना सहायक है, इसका सबसे बड़ा , महिलाओं का पंचायत स्तर पर कार्य कौशल का प्रदर्शन जहाँ सरकार ने 50 प्रतिशस्त आरक्षण दिया है। जब तक महिलाएँ राजनीति में नहीं आती उन पक्षों पर ध्यान जाना मुस्कान है जो महिला एवं बालविकास से जुड़े हैं। इनकी भागीदारी के बाद समाज म नई क्रांति की शुरुआत होगी और विकास के एक नये दौर की शुरुआत होगा। बिहार के लिए तो महिलाओं की राजनीति में भागीदारी सर्वाधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।
9. राष्ट्र की प्रगति में महिलाओं का क्या योगदान है ?
उत्तर ⇒ एक जमाना था जब भारत महिलाओं का कार्यक्षेत्र घर की चहारदावार तक ही सीमित था। धीरे-धीरे भारत की महिलाओं की इच्छा घर की चहारदावार से बाहर निकलकर समाज में अपनी पहचान बनाने की हुई। वर्तमान युग का भारताच महिलाएँ इस इच्छा की पूर्ति करने में पूरी तरह सफल हो रही है। वे आज उन आध कारों को प्राप्त करने में भी कामयाब हो गई हैं जो कभी एकमात्र पुरुषों का कायदान माना जाता रहा है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आज वे परुषों के साथकंध-स-कचमिलाकर ही नहीं चल रही हैं, बल्कि कुछ क्षेत्रों में उनके कदम पुरुषों से भी आग बढ गए हैं। 10th class social science subjective question
स्वभाविक है कि राष्ट्र की प्रगति में उनके योगदान को नजरअंदाज नहा किया जा सकता है। चाहे राजनीति का क्षेत्र हो, सरकारी पदों का क्षेत्र हो, तकनीकी एवं शिक्षा का क्षेत्र हो, खेल का मैदान हो, मनोरंजन और साहित्य की दुनिया हा सभी जगह महिलाओं की साझेदारी स्पष्ट दिखाई दे रही है। राष्ट्र की प्रगति में जिन महिलाओं ने अपना योगदान दिया है, राष्ट्र उनके योगदान को कभी नहीं भूल सकता। मेधा पाटेकर, इला भट्ट, पी०टी० उषा, किरण बेदी, लता मंगेशकर जैसी भारतीय महिलाएँ विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाकर राष्ट्र की प्रगति में योगदान देने में रत की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल तथा लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार राष्ट्र की प्रगति में अपना योगदान दी हैं। अत: यह कहना उचित होगा कि सभी क्षेत्रों में महिलाओं ने अपनी पैठ बना रखी है और राष्ट्र की प्रगति ऐसी महिलाओं के योगदान पर ही निर्भर है।
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10. बहुमत के शासन का क्या अर्थ है ? स्पष्ट करें।
उत्तर ⇒ बहुमत के शासन का अर्थ. किसी धर्म, नस्ल, जाति अथवा भाषायी आधार पर बहुसंख्यक समूह का शासन नहीं होता। बहुमत के शासन का अर्थ है प्रत्येक फैसले या चुनाव में अलग-अलग लोग और समूह बहुमत का निर्माण कर सकते हैं अथवा बहुमत में हो सकते हैं। लोकतंत्र तभी तक लोकतंत्र रहता है जब तक, प्रत्येक नागरिक को किसी न किसी अवसर पर बहुमत का हिस्सा बनने का मौका मिलता है। अत: बहुमत के शासन का अर्थ है कि सर्वाधिक जनसंख्या का शासन। यही कारण है कि लोकतंत्र में सत्ता उसे ही प्राप्त होता है जिसे जनता का सर्वाधिक समर्थन प्राप्त है।
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11. अनेक समस्याओं के बावजूद लोकतंत्र ही श्रेष्ठ सरकार प्रदान करता है। समझावें।
उत्तर ⇒ यह सत्य है कि लोकतंत्र अनेक समस्याओं से जूझ रहा है और समय के साथ इसकी चुनौतियाँ भी बढ़ी हैं, परंतु इन सबके बावजूद यह श्रेष्ठ बताया जाता है क्योंकि
(i) लोकतंत्र में नागरिकों में समानता को बढ़ावा दिया जाता है।
(ii) इसमें व्यक्ति की गरिमा का विस्तार होता है।
(iii) इसमें सर्वसमर्थन से बेहतर निर्णय सामने आते हैं।
(iv) यह टकरावों को टालने एवं संभालने का तरीका देता है।
(v) इसमें प्रत्येक चुनाव, जनता को अपनी गलतियों के सुधार का अवसर देता
अतः यह श्रेष्ठ सरकार प्रदान करता है।
12.“सामाजिक विभेद लोकतांत्रिक व्यवस्था के लि उदाहरण के साथ स्पष्ट करें।
उत्तर ⇒ सामाजिक विभेदों का लोकतंत्र पर अवश्य प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव प्रायः खतरनाक ही सिद्ध होता है। सामाजिक विभेदों का लोकतंत्र पर दर्ज प्रभाव यह पडता है कि किसी-किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में सामाजिक मी व्यवस्था को इतना प्रभावित कर देता है कि वहाँ सामाजिक विभेदों की राजनीति हो जाती है। जब सामाजिक विभेद राजनीतिक विभेद में परिवर्तित हो जाता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक हो जाता है। ऐसा होने पर लोकतानि व्यवस्था का ही विखंडन हो जाता है। 10th class social science subjective question
इसे उदाहरण द्वारा समझाया जा सकता है, युगोस्लाविया में धर्म और जाति के आधार पर सामाजिक विभेद इस हद तक गया कि वहाँ सामाजिक विभेद की राजनीति स्थापित हो गई। यह यूगोस्लाविया के लिए खतरनाक सिद्ध हुआ। परंतु इसे अक्षरश: स्वीकार नहीं किया जा सकता। अनेक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सामाजिक विभेद रहते हुए भी देश के विघटन की नि नहीं आती है। भारत और बेल्जियम में सामाजिक विभेद रहते हुए भी वे लोकतानि व्यवस्था के लिए खतरे नहीं है।
13. क्या चुने गए शासक लोकतंत्र में अपनी मर्जी से सबकुछ का सकते हैं ?
उत्तर ⇒ किसी भी लोकतंत्र में यह संभव नहीं कि चुने गए शासक अपनी मर्जी से सब कुछ करें। सभी की सीमाएँ कानून के द्वारा तय कर दी गई है। इसमें विपक्ष की भूमिका भी अति महत्त्वपूर्ण है क्योंकि चुने गए शासकों को अपनी सीमाओं का उल्लंघन करने से रोकती है। इसके भय से वे अपनी मनमानी नहीं कर पाते। इसके अलावा जनता को भी अधिकार प्राप्त है कि ऐसी स्थिति में आन्दोलनों के माध्यम से सत्ता पक्ष को अपनी मनमानी करने से रोके। यदि ऐसा नहीं होता तो अगले चुनाव के समय जनता सत्ता पक्ष को दुबारा मौका नहीं देती इस प्रकार हम देखते हैं कि चुने गए शासक अपनी मर्जी से नहीं बल्कि कानून की सीमा में रहकर और जनता की भावनाओं का ध्यान रखते हुए शासन चलाते हैं।
14. ‘सुचना के अधिकार आंदोलन के मुख्य उदेश्य क्या है ?
उत्तर ⇒ सूचना के अधिकार आंदोलन का मुख्य उद्देश्य लोगों को जानकार बनाने, सरकारी कामकाज पर नियंत्रण रखना तथा सरकार एवं सरकारी मुलजिमों के कार्यों का सार्वजनिकीकरण करना है। राजस्थान में सरकार ने 1994 ई० और 1996 ई० में जन-सुनवायी आयोजित की । इस आंदोलन के दबाव में सरकार को राजस्थान पंचायती राज अधिनियम में संशोधन कर पंचायत के दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतिलिपि जनता को उपलब्ध कराने का आदेश निर्गत करना पड़ा।
1996 ई० में दिल्ली में सूचना के अधिकार आंदोलन को लेकर एक राष्ट्रीय समिति का गठन हुआ। 2002 ई० में सूचना की स्वतंत्रता नामक एक विधेयक पारित हुआ, लेकिन इसमें व्याप्त गड़बड़ियों के कारण इसे सार्वजनिक नहीं किया गया। 2004 ई० में सूचना के अधिकार से सम्बन्धित विधेयक संसद में लाया गया। जिसे जून, 2005 ई० में राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली और यह अधिनियम बन गया। इस अधिकार द्वारा जनता को जागरूक कर विकास को समझने परखने के कौशल में विकास लाने का उद्देश्य समाहित है।
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15. न्यायपालिका की भूमिका लोकतंत्र की चुनौती है। कैसे, इसके सुधारने के क्या उपाय है ?
उत्तर ⇒ वर्तमान दौर में न्यायपालिका की भूमिका वास्तव में लोकतंत्र की चुनौती है। अनेक अवसरों पर ऐसा देखा गया है कि न्यायपालिका को कानून एवं विधि व्यवस्था के क्षेत्र में सक्रिय होना पड़ता है और ऐसा तभी होता है जब विधायिका एवं कार्यपालिका अपने अधिकारों एवं दायित्वों के निर्वहन में विलंब, लापरवाही अथवा निष्क्रियता बरतते हैं। लाचार होकर कई बार न्यायपालिका ऐसी स्थिति में उन्ह फटकार लगाती है। 10th class social science subjective question
अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्तियों द्वारा चुनाव लड़े जाने पर रोक हतु न्यायपालिका ने कई बार कड़े कदम उठाए हैं, जबकि अपराधी प्रवृत्ति के लोगों द्वार राजनीति में प्रवेश करने के तरीके से सुधार हेतु कानून निर्माण का कार्य विधायिका को करना चाहिए तथा इसे लागू करने का कार्य कार्यपालिका को करना चाहिए विधायिका एवं कार्यपालिका को अपने अधिकार, कर्त्तव्य एवं उत्तरदायित्वा प्रति सजग रहना होगा ताकि शासन का तीसरा अंग उन पर हावी न हो। जना याचिकाओं की बढ़ती तादाद के कारण भी न्यायपालिका के कार्यों में वृद्धि हुई जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह अपनी सीमा लाँघ रही है। अतः स्पष्ट है । न्यायपालिका की भूमिका लोकतंत्र की चुनौती है।
Political Science Long Subjective Question |
लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी |
सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली |
लोकतंत्र में प्रतिस्पर्धा एवं संघर्ष |
लोकतंत्र की उपलब्धियां |
लोकतंत्र की चुनौतियां |