Class 10th Map Study Long Type Questions : मैट्रिक परीक्षा के तैयारी के लिए सामाजिक विज्ञान (social science) class 10th के कुछ महत्वपूर्ण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न आपको दिए गए हैं। जो आप के बोर्ड परीक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। तो अगर आप मैट्रिक परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो इस दीर्घ उत्तरीय प्रश्न को एक बार जरूर पढ़ें। कक्षा 10वीं सामाजिक विज्ञान दीर्घ उत्तरीय प्रश्न || PDF Download
मानचित्र अध्ययन |
Class 10th Map Study Long Type Questions
1. हैश्यूर से आप क्या समझते हैं? इसका प्रयोग किस काम के लिए किया जाता है ?
उत्तर- मानचित्र बनाने में भूमि की ढाल दिखाने के लिए छोटी-छोटी और सटी रेखाओं से काम लिया जाता है, जिन्हें हैश्यूर कहते हैं। खड़ी ढाल प्रदर्शित करने के लिए अधिक छोटी और सटी रेखाएँ तथा धीमी ढाल प्रदर्शित करने के लिए अपेक्षाकृत बड़े और दूर-दूर रेखा चिह्न खींचे जाते हैं। समतल भाग के लिए रेखा चिह्न नहीं खींचे जाते, ये भाग खाली छोड़ दिए जाते हैं।
इस विधि से स्थलाकृति का साधारण ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। ऊँचाई का सही ज्ञान नहीं हो पाता है। इस विधि में रेखाचिह्नों को खींचने में अधिक समय लगता है। समोच्च रेखा वाले मानचित्र में छोटी आकृतियों को प्रदर्शित करने के लिए यह विधि अपनायी जाती है। इस विधि का विकास आस्ट्रेलिया के एक सैन्य अधिकारी लेहमान ने किया था।
2. समोच्च रेखाओं द्वारा विभिन्न प्रकार की स्थलाकृति का प्रदर्शन करें।
उत्तर – भू-आकृतियों के अनुरूप ही समोच्च रेखाओं का प्रारूप बनता है और उन समोच्च रेखाओं पर संख्यात्मक मान ऊँचाई के अनुसार ही बैठाया जाता है। उदाहरण के लिए यदि वृत्ताकार प्रारूप में आठ दस समोच्च रेखाएँ खींचे जाते हैं तो इससे दो भू-आकृतियाँ दिखाई जा सकती है। प्रथम शंक्वाकार पहाड़ी और द्वितीय झील। शंक्वाकार पहाड़ी के लिए बनाए जानेवाले समोच्च रेखाओं का मान बाहर से अंदर की ओर बढ़ता जाता है। दूसरी ओर झील आकृति दिखाने के लिए समोच्च रेखाओं में बाहर की ओर अधिक मान वाली तथा अंदर की ओर बढ़ता जाता है। दूसरी ओर झील आकृति दिखाने के लिए समोच्च रेखाओं में बाहर की ओर अधिक मानवाली तथा अंदर की ओर कम मानवाली समोच्च रेखाएँ होती हैं।
पर्वत- पर्वत स्थल पर पाई जानेवाली वह आकति है जिसका आधार काफी पाहा तथा शिखर काफी पतला अथवा नकिला होता है। आसपास की स्थलाकृति स यह पर्याप्त ऊँची उठी हई होती है। इसका मप शंकनमा होता है। ज्वालामुखी से मित पहाड़ी शंकु आकृति की होती है। शंक्वाकार पहाड़ी की समोच्च रेखाओं को लगभग वृत्ताकार रूप में बनाया जाता है। बाहर से अंदर की ओर वृत्तों का आकार छोटा होता जाता है। बीच में सर्वाधिक ऊँचाई वाला वृत्त होता है।
पठार- इसका आकार और शिखर दोनों चौडा और विस्तृत होता है। इसका विस्तृत शिखर उबड़-खाबड़ होता है। इसलिए, पठारी ‘पाग को दिखाने के लिए समाच्च रेखाओं को लगभग लंबाकार आकति में बनाया जाता है। प्रत्येक समोच्च रखा बंद आकृति में बनाया जाता है। इसका मध्यवती समोच्च रेखा भी पर्याप्त चौड़ा बनाया जाता है।
जलप्रपात – जब किसी नदी का जल अपनी घाट से गुजरने के दौरान ऊपर से नीचे की ओर तीव्र ढाल पर अकस्मात गिरती है तब उसे जलप्रपात कहते हैं। इस आकृति को दिखाने के लिए खड़ी ढाल के पास कई समोच्च रेखाओं को एक स्थान पर मिला दिया जाता है और रेखाओं को ढाल के अनुरूप बनाया जाता है।
‘V’ आकार की घाटी – नदी के द्वारा उसके युवावस्था में इसका निर्माण होता है। इस आकृति को प्रदर्शित करने के लिए समोच्च रेखाओं को अंग्रेजी को ‘V’ अक्षर की उल्टी आकृति बनाई जाती है, जिसमें समोच्च रेखाओं का मान बाहर से अंदर की ओर क्रमशः घटता जाता है।
Map Questions For Class 10th With Answers in Hindi
3. स्तर-रंजन अथवा रंग विधि का प्रयोग स्थलाकृतियों को दर्शाने ।में किस प्रकार किया जाता है ? समझायें।
उत्तर — इस विधि में सादे मानचित्र में काली स्याही के विभिन्न स्तरों के द्वारा किसी स्थान के उच्चावच को प्रदर्शित किया जाता है। रंगीन मानचित्र में विभिन्न स्थलाकृतियों को विभिन्न रंगों द्वारा दर्शाया जाता है। इन रंगों का एक मानक निश्चित किया गया है। उदाहरण के तौर पर, जलीय भाग को नीले रंग से, मरुभूमि को पीले रंग से, बर्फीले क्षेत्र को सफेद रंग से, मैदानों को हरे रंग से और पर्वतों एवं पठारों को भूरे रंग से दर्शाया जाता है।
4. उच्चावच-प्रदर्शन की प्रमुख विधियों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर—प्राचीन समय से ही मानचित्रों पर उच्चावच प्रदर्शित करने के लिए अनेक विधियों का उपयोग किया जाता रहा है, जो निम्न हैं-
(i) हैश्वर विधि या रेखा चिन्ह विधि — इस विधि का विकास आस्ट्रिया के एक सैन्य अधिकारी लेहमान द्वारा किया गया था। इस विधि से स्थलाकृति का साधारण ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। इस विधि द्वारा ऊँचाई का सही-सही पता नहीं लगाया जा सकता है।
(ii) पर्वतीय छायांकन विधि- इस विधि द्वारा उच्चावच का प्रदर्शन प्रकाश और छाया की सहायता से किया जाता है। इस विधि द्वारा भी स्थलाकृति
का साधारण ज्ञान प्राप्त किया जाता है।
(iii) तल चिन्ह विधि – इस विधि में उच्चावच का निरूपण समुद्र तल से ऊँचाई के आधार पर किया जाता है।
(iv) स्थानिक ऊँचाई- इस विधि में भी उच्चावच का निरूपण करने के लिए स्पष्ट बिन्दु के समीप अंक लिए जाते हैं, जो समुद्र तल से ऊँचाई को प्रदर्शित करती है।
(v) त्रिकोणमितीय स्टेशन- उच्चावच का प्रदर्शन करने के लिए विभिन्न स्थानों का चुनाव करते हैं और उस स्थानों पर त्रिभुज बनाकर उच्चावच का प्रदर्शन करते हैं।
(vi) स्तर रंजन- इस विधि में उच्चावच प्रदर्शन करने के क्रम में विभिन्न रंगों का प्रयोग किया जाता है। इस विधि से भी वास्तविक ढाल का ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
Class 10th Map Study Subjective Questions
स्मरणीय तथ्य:-
- मानचित्र एक महत्त्वपूर्ण भौगोलिक उपकरण है। इसमें भू-सतह के प्राकृतिक एवं मानवकृत ब्योरों को प्रदर्शित किया जाता है।
- हैश्यूर विधि का विकास लेहमान ने किया था।
- हैश्यूर विधि के अंतर्गत मानचित्र में छोटी, महीन एवं खंडित रेखाएँ खींची जाती है।
- ये रेखाएँ ढाल की दिशा में या जल के प्रवाह की दिशा में खींची जाती है।
- पर्वतीय छायाकरण — इसमें पर्वतीय देशों के उच्चावच को प्रभावशाली ढंग से दिखाया जाता है।
- समोच्च रेखाएँ उच्चावच प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गई हैं।
- पठारों को प्रदर्शित करने के लिए समोच्च रेखाएँ किनारों पर पास-पास तथा भीतर की ओर दूर-दूर होती हैं।
- शंक्वाकार पहाड़ी की समोच्च रेखाएँ लगभग वृत्ताकार रूप में बनाई जाती है।
- पठारी भाग को दिखाने के लिए समोच्च रेखाएँ लंबाकार आकृति में होती है।
- V-आकार की घाटी का निचला भाग भीतरी समोच्च रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
Class 10th Short Subjective Question Answer |
भारत : संसाधन एवं उपयोग |
कृषि |
निर्माण उद्योग |
परिवहन , संचार एवं व्यापार |
बिहार : कृषि एवं वन संसाधन |
मानचित्र अध्ययन |