Press-Sanskriti Evam Rashtravad Subjective Questions : अगर आप 10वीं कक्षा का छात्र हैं। तो आपके लिए यहाँ पर History का Subjective Question दिया गया है। जिसे आप किसी भी समय पढ़ सकते हैं। History VVI Subjective Question PDF Download || Drishti Classes
प्रेस-संस्कृति एवं राष्ट्रवाद ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) |
Press-Sanskriti Evam Rashtravad Subjective Questions
1. वर्तमान समय (स्वतंत्र भारत) में प्रेस की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर ⇒ स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद और वर्तमान समय में भी प्रेस भारतीय राजनीति समाज, आर्थिक और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के विकास में महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावशाली भूमिका का निर्वहन कर रहा है। इसका प्रभाव प्रत्येक क्षेत्र में देखा जा सकता है। वह सूचना, मनोरंजन, शिक्षा, खेलकट सिनेमा, रंगमंच, अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं, सरकारी नीतियों, प्रादेशिक क्षेत्रीय और स्थानीय घटनाओं की जानकारी देनेवाला मुख्य माध्यम बन गया है।
समाचारपत्रों ने साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अभिरुचि जगाने में भी योगदान किया है। इसने सामाजिक सुधार कार्यक्रमों को भी प्रोत्साहित किया है। वर्तमान संदर्भ में प्रेस रचनात्मक भूमिका का भी निर्वहन कर रहा है। समाज के समक्ष आधुनिक वैज्ञानिक और दार्शनिक उपलब्धियों को रखकर यह नई चेतना और विश्वबंधुत्व की भावना जागृत कर रही है।
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने में मानवाधिकारों की सुरक्षा करने में तथा प्रशासनिक भ्रष्टाचारों को उजागर करने में प्रेस की प्रभावशाली भूमिका है। आज प्रेस स्वतंत्र है। यह सरकार पर नियंत्रण रखने का प्रभावशाली अस्त्र बन गया है।
2. आज के परिवर्तनकारी यग स्वातंत्र्योत्तर भारत में प्रेस की भूमिका की व्याख्या करें।
उत्तर ⇒ वैश्विक स्तर पर मुद्रण अपने आदिकाल से भारत में स्वाधीनता आंदोलन तक भिन्न-भिन्न परिस्थितियों से गुजरते हुए आज अपनी उपादेयता के कारण ऐसी स्थिति में पहुँच गया है जिससे ज्ञान जगत की हर गतिविधियाँ प्रभावित हो रही हैं। आज पत्रकारिता साहित्य, मनोरंजन, ज्ञान-विज्ञान, प्रशासन, राजनीति आदि को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर रहा है।
स्वातंत्र्योत्तर भारत में पत्र-पत्रिकाओं का उद्देश्य भले ही व्यावसायिक रहा हो, किंतु इसने साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अभिरुचि जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। पत्र-पत्रिकाओं ने दिन-प्रतिदिन घटनेवाली घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में नई और सहज शब्दावली का प्रयोग करते हुए भाषाशास्त्र के विकास में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। प्रेस ने समाज में नवचेतना पैदाकर सामाजिक, धार्मिक,
जनीतिक एवं दैनिक जीवन में क्रांति का सूत्रपात किया। प्रेस ने लदेव सामाजिक बुराइयों जैसे दहेज प्रथा, विधवा विवाह, वालिका विवाह, वालिकावधु, बाल हत्या, शिशु विवाह जैसे मुद्दों को उठाकर समाज की कुप्रथाओं को दूर करने में मदद की तथा व्याप्त अंधविश्वास को दूर करने का प्रयास किया
आज प्रेस समाज में रचनात्मकता का प्रतीक भी बनता जा रहा है। यह समाज की नित्यप्रति की उपलब्धियों, वैज्ञानिक अनुसंधानों, वैज्ञानिक उपकरणों एवं साधनों से परिचित कराता है। आज के आधुनिक दौर में प्रेस साहित्य और समाज की समद्ध चेतना की घरोहर है। प्रेस लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने हेतु सजग प्रहरी के रूप में हमारे सामने खड़ा है।
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3. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में प्रेस की भूमिका एवं प्रभाव की विवेचना कीजिए। अथवा, राष्ट्रीय आंदोलन को भारतीय प्रेस ने कैसे प्रभावित किया ?
उत्तर ⇒ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के उद्भव एवं विकास में प्रेस की प्रभावशाली भूमिका रही। इसने राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं अन्य मुद्दों को उठाकर, उन्हें जनता के समक्ष लाकर उनमें राष्ट्रवादी भावना का विकास किया तथा लोगों में जागृति ला दी। प्रेस में प्रकाशित लेखों और समाचार-पत्रों से भारतीय औपनिवेशिक शासन के वास्तविक स्वरूप से परिचित हुए। वे अंग्रेजों की प्रजातीय विभेद और शोषण की नीतियों से परिचित हुए।
समाचार-पत्रों ने उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के घिनौने मुखौटा का पर्दाफाश कर दिया तथा इनके विरुद्ध लोकमत को संगठित किया। जनता को राजनीतिक शिक्षा देने का दायित्व समाचार-पत्रों ने अपने ऊपर ले लिया। समाचार-पत्रों ने देश में चलने वाले विभिन्न आंदोलनों एवं राजनीतिक कार्यक्रमों से जनता को परिचित कराया। कांग्रेस के कार्यक्रम हों या उसके अधिवेशन, बंग-भंग आदोलन अथवा असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन समाचार पत्रों द्वारा लोगों को इनमें भाग लेने की प्रेरणा मिलती थी।
कांग्रेस की भिक्षाटन की नीति का प्रेस ने विरोध किया तथा स्वदेशी और बहिष्कार की भावना को बढ़ावा देकर राष्ट्रवाद का प्रसार किया। इस प्रकार समाचार-पत्रों ने राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा दी। तिलक, ऐनीबेसेंट, महात्मा गाँधी और अन्य प्रभावशाली नेता प्रेस के माध्यम से ही जनता तक पहुँच सके। समाचार-पत्रों के माध्यम से आम जनता भी प्रेस और राष्ट्रवाद से जुड़ गयी।
4. मद्रण क्रांति ने आधुनिक विश्व को कैसे प्रभावित किया।
उत्तर ⇒ मुद्रण क्रांति ने आम लोगों को जिन्दगी ही बदल दी मुद्रण क्रांति के करण छापाखानों की संख्या में भारी वृद्धि हुई। जिसके परिणामस्वरूप पर निर्माण में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। मुद्रण क्रांति के फलस्वरूप किताबें समाज के हर तबकों के बीच पहुँच पायी। किताबों की पहुंच आसान होने से पढ़ने की एक नई संस्कृति विकसित हुई। एक नया पाठक वर्ग पैदा हुआ तथा पढ़ने के कारण उनके अंदर तार्किक क्षमता का विकास हुआ।
पठन-पाठन से विचारों का व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ तथा तर्कवाद और मानवतावाद का द्वार खुला। धर्म सुधारक मार्टिन लूथर ने रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना करते हुए अपनी पिच्चानवें स्थापनाएँ लिखी। फलस्वरूप चर्च में विभाजन हुआ और प्रोटेस्टेंटवाद की स्थापना हुई। इस तरह छपाई से नए बौद्धिक माहौल का निर्माण हुआ एवं धर्म सुधार आंदोलन के नए विचारों का फैलाव बड़ी तेजी से आम लोगों तक हुआ। वैज्ञानिक एवं दार्शनिक बातें भी आम जनता की पहुँच से बाहर नहीं रही। न्यूटन, टामसपेन, वाल्तेयर और रूसो की पुस्तकें भारी मात्रा में छपने और पढ़ी जाने लगी।
मुद्रण क्रांति के फलस्वरूप प्रगति और ज्ञानोदय का प्रकाश यूरोप में फैल चुका था। लोगों में निरंकुश सत्ता से लड़ने हेतु नैतिक साहस का संचार होने लगा था। फलस्वरूप मुद्रण संस्कृति ने फ्रांसीसी क्रांति के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण किया।
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5. 19वीं शताब्दी में भारत में प्रेस के विकास को रेखांकित करें।
उत्तर ⇒ 19वीं शताब्दी में प्रेस ज्वलंत राजनीतिक एवं सामाजिक प्रश्नों को उठानेवाला एक सशक्त माध्यम बन गया। आधुनिक भारतीय प्रेस का आरंभ 1766 में विलियम बोल्टस द्वारा प्रकाशित समाचार-पत्र से माना जाता है। 1780 में जेम्स आगस्टस हिक्की ने अंग्रेजी भाषा में ‘बंगाल गजट’ नामक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया। हिक्की के प्रेस को कंपनी ने जब्त कर लिया। नवम्बर, 1780 में प्रकाशित ‘इंडिया गजट’ दूसरा भारतीय पत्र था।
भारतीयों द्वारा प्रकाशित प्रथम समाचार-पत्र 1816 में गंगाधर भट्टाचार्य का साप्ताहिक ‘बंगाल गजट’ था। 1821 में बंगाली में संवाद कौमुदी तथा 1822 में फारसी में प्रकाशित मिरातुल अखबार के साथ प्रगतिशील राष्ट्रीय प्रवृत्ति के समाचार-पत्रों का प्रकाशन आरंभ हुआ। इन समाचार पत्रों के संस्थापक राममोहन राय थे जो अंग्रेजी में ब्राझिनिकल मैंगजीन भी निकाला। 1822 में बंबई से गुजराती भाषा में दैनिक बंबई समाचार निकलने लगे। Press-Sanskriti Evam Rashtravad Subjective Questions
द्वारकानाथ टैगोर, प्रसन्न कुमार टैगोर तथा राममोहन राय के प्रयास से 1830 में बंगदत्त की स्थापना हुई। 1831 में जामे जमशेद, 1851 में गोफ्तार तथा अखबारें सौदागर का प्रकाशन आरंभ हुआ। ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी भारतीय समाचार-पत्रों द्वारा सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक चेतना के विकास को शंका की दृष्टि से देखते थे। इसलिए 19वीं शताब्दी में भारतीय प्रेस को प्रतिबंधित करने का कुत्सित प्रयास किया।
6. मुद्रण यंत्र की विकास यात्रा को रेखांकित करें। यह आधुनिक स्वरूप में कैसे पहुँचा?
उत्तर ⇒ मुद्रण कला के आविष्कार और विकास का श्रेय चीन को जाता है। 1041 ई० में एक चीनी व्यक्ति पि-शेंग ने मिट्टी के मुद्रा बनाए। इन अक्षर मुद्रों को साजन कर छाप लिया जा सकता था। इस पद्धति ने ब्लॉक प्रिंटिंग का स्थान ले लिया। धातु के मुवेबल टाइप द्वारा प्रथम पुस्तक 13वीं सदी के पूर्वार्द्ध में मध्य कोरिया में छापी गई। यद्यपि मवेबल टाइपों द्वारा मुद्रण कला का आविष्कार ता पूरख में ही हुआ, परंतु इस कला का विकास यूरोप में अधिक हुआ।
13वीं सदी के आतम में रोमन मिशनरी एवं मार्कोपोलो द्वारा ब्लॉक प्रिंटिंग के नमनं यरोप पहुँचे। रोमन लिपि में अक्षरों की संख्या कम होने के कारण लकड़ी तथा धातु के बने मूर्वबल टाइम का प्रसार तेजी से हुआ। इसी काल में शिक्षा के प्रसार, व्यापार एवं मिशनारया का बढ़ती गतिविधियों से सस्ती मुद्रित सामग्रियों की माँग तेजी से बढ़ी। इस मांग की पति के लिए तेज और सस्ती मद्रण तकनीकी की आवश्यकता थी, जिसे (14304 दशक में) स्ट्रेसवर्ग के योहान गुटेन्वर्ग ने पूरा कर दिखाया।
18वीं सदी के अंतिम चरण तक धातु के बने छापाखानं काम करने लगे। 19वीं-20वीं सदी में छापाखाना में और अधिक तकनीकी सुधार किए गए। 19वा शताब्दी में न्यूयार्क निवासी एम० ए० हो ने शक्ति-चालित बेलनाकार प्रेस का निर्माण किया। इसके द्वारा प्रतिघंटा आठ हजार ताव छापे जाने लगे। इससे मुद्रण में तेजी आई। 20वीं सदी के आरंभ से बिजली संचालित प्रेस व्यवहार में आया। इसने छपाई को और गति प्रदान की। प्रेस में अन्य तकनीकी बदलाव भी लाए गए।
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7. राष्ट्रवादी आंदोलन में उर्दू प्रेस या उर्दू पत्रकारिता की भूमिका की चर्चा करें।
उत्तर ⇒ भारत में 1910-1920 के बीच उर्दू पत्रकारिता का विकास हुआ। मौलाना आजाद के संपादन में 1912 में अल हिलाल तथा 1913 में अल बिलाग का कलकत्ता से प्रकाशन प्रारंभ हुआ। मो० अली ने अंग्रेजी में कामरेड तथा उर्दू में हमदर्द का प्रकाशन किया।
जहाँ तक उर्दू प्रेस का राष्ट्रवादी आंदोलन से संबंध की बात है, 1857 की क्रांति के दौरान एवं इसके पश्चात् यह अंग्रेजी राज की घोर आलोचक थी। Press-Sanskriti Evam Rashtravad Subjective Questions
लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में सर सैयद अहमद खाँ के बढ़ते प्रभाव ने इसे कांग्रेस समर्थित राष्ट्रीय आंदोलन एवं अंग्रेजी राज से मुसलमानों के संबंधों की नई व्यवस्था करने के लिए प्रेरित किया। हालाँकि उर्दू प्रेस ने सामान्य रूप से सर सैयद अहमद के विचारों से सहमति प्रकट नहीं की। मौलाना आजाद, मोहम्मद अली और अब्दुल बारी साहेब आदि के संपादन में प्रकाशित होने वाले पत्र पूर्णतः राष्ट्रवादी भावनाओं से ओत-प्रोत थे। इनमें से कई पत्रों के ग्राहक सर सैयद के अलीगढ़ जर्नल से कहीं अधिक थे।
8. फ्रांसीसी क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार करने में मुद्रण की भूमिका की विवेचना करें।
उत्तर ⇒ फ्रांस की क्रांति में बौद्धिक कारणों का भी काफी महत्त्वपूर्ण योगदान था। फ्रांस के लेखकों और दार्शनिकों ने अपने लेखों और पुस्तकों द्वारा लोगों में नई चेतना जगाकर क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार कर दी। मुद्रण ने निम्नलिखित प्रकारों से फ्रांसीसी क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार करने में अपनी भूमिका निभाई।
(i) ज्ञानोदय के दार्शनिकों के विचारों का प्रसार—फ्रांसीसी दार्शनिकों ने रूढ़िगत सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक व्यवस्था की कटु आलोचना की। इन लोगों ने इस बात पर बल दिया कि अंधविश्वास और निरंकुशवाद के स्थान पर तर्क और विवेक पर आधारित व्यवस्था की स्थापना हो। चर्च और राज्य की निरंकुश सत्ता पर प्रहार किया गया। वाल्टेयर और रूसो ऐसे महान दार्शनिक थे जिनके लेखन का जनमानस पर गहरा प्रभाव पड़ा।
(ii) वाद-विवाद की संस्कृति— पुस्तकों और लेखों ने वाद-विवाद की संस्कृति को जन्म दिया। अब लोग पुरानी मान्यताओं की समीक्षा कर उन पर अपने विचार प्रकट करने लगे। इससे नई सोच उभरी। राजशाही, चर्च और सामाजिक व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। फलतः क्रांतिकारी विचारधारा का उदय हुआ।
(iii) राजशाही के विरुद्ध असंतोष- 1789 की क्रांति के पूर्व फ्रांस में बड़ी संख्या में ऐसा साहित्य प्रकाशित हो चुका था जिसमें तानाशाही, राजव्यवस्था और इसके नैतिक पतन की कट आलोचना की गयी थी। अनेक व्यंग्यात्मक चित्रा वारा यह दिखाया गया कि किस प्रकार आम जनता का जीवन कष्टों और अभावों से ग्रस्त था, जबकि राजा और उसके दरबारी विलासिता में लीन हैं। इससे जनता में राजतंत्र के विरुद्ध असंतोष बढ़ गया।
9. औपनिवेशिक सरकार ने भारतीय प्रेस को प्रतिबंधित करने के लिए क्या किया ?
उत्तर ⇒ औपनिवेशिक काल में प्रकाशन के विकास के साथ-साथ इसे नियंत्रित करने का भी प्रयास किया। ऐसा करने के पीछे दो कारण थे—पहला, सरकार वैसी कोई पत्र-पत्रिका अथवा समाचार पत्र मुक्त रूप से प्रकाशित नहीं होने देना चाहती थी जिसमें सरकारी व्यवस्था और नीतियों की आलोचना हो तथा दूसरा, जब अंगरेजी राज की स्थापना हुई Press-Sanskriti Evam Rashtravad Subjective Questions
उसी समय से भारतीय राष्ट्रवाद का विकास भी होने लगा। राष्ट्रवादी संदेश के प्रसार को रोकने के लिए प्रकाशन पर नियंत्रण लगाना सरकार के लिए आवश्यक था। भारतीय प्रेस को प्रतिबंधित करने के लिए औपनिवेशिक सरकार के द्वारा पारित विभिन्न अधिनियम उल्लेखनीय हैं –
(i) 1799 का अधिनियम- गवर्नर जनरल वेलेस्ली ने 1799 में एक अधिनियम पारित किया। इसके अनुसार समाचार-पत्रों पर सेंशरशिप लगा दिया गया।
(ii) 1823 का लाइसेंस अधिनियम- इस अधिनियम द्वारा प्रेस स्थापित करने से पहले सरकारी अनुमति लेना आवश्यक बना दिया गया।
(iii) 1867 का पंजीकरण अधिनियम – इस अधिनियम द्वारा यह आवश्यक बना दिया गया कि प्रत्येक पुस्तक, समाचार पत्र एवं पत्र-पत्रिका पर मुद्रक, प्रकाशक तथा मुद्रण के स्थान का नाम अनिवार्य रूप से दिया जाए। साथ ही प्रकाशित पुस्तक की एक प्रति सरकार के पास जमा करना आवश्यक बना दिया गया।
(iv) वाक्यूलर प्रेस एक्ट (1878) – लार्ड लिटन के शासनकाल में पारित प्रेस को प्रतिबंधित करने वाला सबसे विवादास्पद अधिनियम यही था। इसका उद्देश्य देशी भाषा के समाचार पत्रों पर कठोर अंकुश लगाना था। अधिनियम के अनुसार भारतीय समाचार पत्र ऐसा कोई समाचार प्रकाशित नहीं कर सकती थी जो अंगरेजी सरकार के प्रति दुर्भावना प्रकट करता हो। भारतीय राष्ट्रवादियों ने इस अधिनियम का बड़ा विरोध किया।
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10. भारत में सामाजिक-धार्मिक सुधारों को पुस्तकों एवं पत्रिकाओं ने – किस प्रकार बढ़ावा दिया?
उत्तर ⇒ 18वीं तथा 19वीं शताब्दी में प्रेस ज्वलंत राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक प्रश्नों को उठानेवाला एक सशक्त माध्यम बन गया। 19वीं सदी में बंगाल में “भारतीय पुनर्जागरण” हुआ। इससे सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन का मार्ग प्रशस्त हुआ। परंपरावादी और नई विचारधारा रखनेवालों ने अपने-अपने विचारों का प्रचार करने के लिए पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं का सहारा लिया।
राजा राममोहन राय ने अपने विचारों को प्रचारित करने के लिए बंगाली भाषा में संवाद कौमुदी पत्रिका का प्रकाशन 1821 में किया। उनके विचारों का खंडन करने के लिए रूढ़िवादियों ने समाचार चंद्रिका नामक पत्रिका प्रकाशित की। राममोहन राय ने 1822 में फारसी भाषा में मिरातुल अखबार तथा अंग्रेजी भाषा में ब्राह्मनिकल मैगजीन भी प्रकाशित किया। उनके ये अखबार सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन के प्रभावशाली अस्त्र बन गए।
भारतीय समाचार-पत्रों ने सामाजिक-धार्मिक समस्याओं से जुड़े ज्वलंत प्रश्नों को उठाया। समाचार-पत्रों ने न्यायिक निर्णयों में किए गए पक्षपातों, धार्मिक मामले में सरकारी हस्तक्षेप और औपनिवेशिक प्रजातीय विभेद की नीति की आलोचना कर राष्ट्रीय चेतना जगाने का प्रयास किया।