Bihar Board 12th Class Hindi Chapter 1 (बातचीत)

Bihar Board Class 12th Hindi Chapter 1 Subject Questions

Bihar Board Class 12th Hindi Chapter 1 Subject Questions : दोस्तों यदि आप 12वीं कक्षा का परीक्षा दे रहे हैं तो या देने वाले हैं तो उन सभी विद्यार्थियों के लिए यहां पर 12वीं कक्षा का हिंदी का लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न दिया गया है।

Bihar Board Class 12th Hindi Chapter 1 Subject Questions

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Bihar Board 12th Class Hindi Chapter 1 (बातचीत) लघु उत्तरीय प्रश्न

1. दो हमजोली सहेलियों की बातचीत में क्या स्थिति होती है ?

उत्तर :- दो हमजोली सहेलियों की बातचीत का स्वाद ही (जायका ही) निराला होता है। भावविभोर होकर दो हमजोली सहेलियाँ जब बातचीत करती हैं तब ऐसा लगता है मानो रस का समुद्र ही उमड़ा चला आ रहा हो।

2. यदि हममें वाक्य की शक्ति न होती तो क्या होता?

उत्तर :- मनुष्य को वाक्शक्ति (बोलने की क्षमता) ईश्वर से वरदान के रूप में प्राप्त है। यदि मनुष्य को ईश्वर से वरदान के रूप में यह शक्ति प्राप्त नहीं हुई होती, तो वह गूँगा होता और अपने सुख-दुख के अनुभवों को अभिव्यक्त करने में सर्वथा असमर्थ होता।

Bihar Board Class 12th Hindi दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

3. अगर हममें वाक्शक्ति न होती, तो क्या होता? ‘बातचीत’ शीर्षक निबंध के आधार पर उत्तर दें।

उत्तर :- मनुष्य को वाक्शक्ति (बोलने की क्षमता) ईश्वर से वरदान के रूप में प्राप्त है। यदि मनुष्य को ईश्वर से वरदान के रूप में यह शक्ति प्राप्त नहीं हुई होती, तो वह गूँगा होता और अपने सुख-दुख के अनुभवों को अभिव्यक्त करने में सर्वथा असमर्थ होता। ऐसी स्थिति में वह कितना दयनीय होता, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। वाक्शक्ति के अंतर्गत वक्तृता (स्पीच) और बातचीत – दोनों सम्मिलित हैं। पर, बातचीत का ढंग स्पीच (वक्तृता) से अलग और निराला होता है। बातचीत में नाज-नखरा (हाव-भाव, मोहक चेष्टा) व्यक्त करने का अवसर नहीं होता, पर वक्तृता (स्पीच) में हाव-भाव और मोहक चेष्टा के लिए काफी अवसर होता है।

4. ‘बातचीत’ शीर्षक निबंध का सारांश लिखिए।

उत्तर :- मनुष्य को वाक्रशक्ति ईश्वर से वरदान के रूप में प्राप्त है। यदि मनुष्य को ईश्वर से वरदान के रूप में यह शक्ति प्राप्त नहीं हुई होती, तो वह गूँगा होता और अपने सुख-दुख के अनुभवों को अभिव्यक्त करने में सर्वथा असमर्थ होता। ऐसी स्थिति में वह कितना दयनीय होता, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।

हमारी साधारण बातचीत घरेलू ढंग की होती है। उसमें न तो करतल ध्वनि का कोई अवसर होता है और न लोगों के कहकहे उड़ाने की कोई बात हो रहती है। दो व्यक्तियों में प्रेमपूर्वक बातचीत करने के क्रम में किसी चुटीली बात पर हँसी अवश्य छूटती है, पर यह हँसी एक सीमा में ही होती है। इस प्रकार की हँसी में केवल ओठ फड़क उठते हैं। मनुष्य के लिए बातचीत अत्यंत आवश्यक है। बातचीत करने से मन में बहुत दिनों से बैठी हुई गलतफहमी दूर होती है और मन हल्का हो जाता है। जिस तरह मवाद निकलने से घाव की टिस-टिस पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है और धुआँ के निकलने से घुटन समाप्त हो जाती है, उसी प्रकार बातचीत से व्यक्ति-व्यक्ति के बीच की गलतफहमियाँ (भ्रांतियाँ) दूर होती हैं और उनका मन चंगा और स्वस्थ हो जाता है। शब्द ही ऐसे माध्यम हैं जिनके द्वारा मनुष्य अपने भीतर की खुशी और पीड़ा को दूसरों तक पहुँचा सकता है और दूसरे के मन के भीतर के भावों से अवगत हो सकता है। बोलने से ही मनुष्य का गुण-दोष प्रकट होता है। मनुष्य के रूप का साक्षात्कार उसके बोलने से ही होता है।

बातचीत की सीमा की शुरुआत दो व्यक्ति से होती है। बातचीत में ज्यादा व्यक्तियों के शरीक होने से इसका आनंद ही समाप्त हो जाता है। एडीसन का यह कथन सही है कि वास्तव में बातचीत सिर्फ दो व्यक्तियों में ही हो सकती है। लेखक ने बातचीत के भेदों की चर्चा करते हुए लिखा है कि यह वय, जीवन स्तर, शिक्षा आदि के आधार अनेक प्रकार की हो सकती हैं; जैसे- बुड्ढों की बातचीत, शिक्षितों की बातचीत, हम सहेलियों की बातचीत, बुदियों की बातचीत, लड़कों की बातचीत, खिलाड़ियों की बातचीत, स्कूली लड़कों की बातचीत, राजकाज की बातचीत, व्यापार संबंधी बातचीत, दो मित्रों की बातचीत आदि।

यूरोप (योरप) में लोग बात करने की धारणा (हुनर) जानते हैं। इसे ‘आर्ट ऑफ कनवरसेशन’ कहा जाता है। बाहरी बातचीत में कम-से-कम दो का होना अनिवार्य है। या तो हम किसी के यहाँ जाएँ या कोई हमारे यहाँ आए। इस दुनियादारी की बातचीत में कभी-कभी रसभंग हो जाया करता है। हमारे यहाँ कोई आए और हम उनका उचित ढंग से स्वागत नहीं कर सके, तो इससे बातचीत नीरस हो जाती है। उसी तरह हम किसी के यहाँ जाएँ और हमारा स्वागत ठीक से नहीं हो, तो इससे हम अपने को अनादृत महसूस करते हैं और बातचीत से हमारा मन उचट जाता है। इसलिए बातचीत का सर्वोत्तम तरीका यही होगा कि हम अपने से ही बातचीत करने की शक्ति अपने भीतर पैदा कर लें।

BSEB Class 12th Hindi Chapter 1 सप्रसंग व्याख्यात्मक प्रश्न

5. सच है, जब तक मनुष्य बोलता नहीं, तब तक उसका गुण-दोष प्रकट नहीं होता

प्रस्तुत सारगर्भित वाक्य हमारी पाठ्यपुस्तक में संगृहीत ‘बातचीत’ शीर्षक निबंध से लिया गया है। इसके रचयिता हिंदी के प्रसिद्ध निबंधकार बालकृष्ण भट्ट हैं। बोलने से ही मनुष्य के रूप का साक्षात्कार होता है। बोलने से व्यक्ति का आंतरिक व्यक्तित्व प्रस्तुत होता है। किसी व्यक्ति के बोलने से ही पता चलता है कि वह किन-किन गुणों से संपन्न है। मुखद्वार से निकले हुए शब्द व्यक्ति की सारी मनोवृत्तियों का कच्चा-चिट्ठा खोल कर रख देते हैं। व्यक्ति का जैसा व्यक्तित्व और आचरण होता है, उसकी भाषा और बोली उसी का अनुगमन करती है। बाहर से कोई लाख सज्जन दीखे,पर यदि वह बातचीत में फूहड़ है, तो उसे सज्जन नहीं कहा जा सकता। हमारी भाषा की रचना में हमारे संपूर्ण व्यक्तित्व का हाथ होता है।

हमारी भाषा या बातचीत में कितनी स्वाभाविकता है और कितनी कृत्रिमता यह कितनी स्वतःस्फूर्त है और कितनी गढ़ी हुई- यह जानने में किसी को देर नहीं लगती। हमारी भाषा और बातचीत यह बता देती है कि हममें कितना पाखंड है और कितनी निष्कपटता। हमारी बातचीत में हमारा स्वरूप हमेशा सतह पर आकर तैरता रहता है। अनुभवी व्यक्ति शब्दों के प्रयोग और बोलने की भंगिमा से यह स्पष्ट पता लगा लेता है कि हमारे चरित्र के गुण और दोष कौन-कौन से हैं। जब तक हम नहीं बोलते, तब तक हमारे चरित्र और स्वरूप के निर्धारण में कठिनाई हो सकती है, पर हम जैसे ही अपनी वाक्शक्ति का प्रयोग करते हैं, वैसे ही हमारा चरित्र एक कौंधक के साथ सबके सामने आ जाता है।