Bihar Board Class 12th History Chapter 3 Subjective Question

Bihar Board Class 12th History Chapter 3 Subjective Question || बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज Subjective Question

Bihar Board Class 12th History Chapter 3 Subjective Question : प्रिय विद्यार्थी यदि आप Board Exam देने वाले हैं और Bihar Board History 100 Marks मे अच्छा नंबर लाना चाहते हैं तो आप सभी के लिए Drishti Classes,History Subjective Question लेकर आया हैं। जिससे BSEB Class 12th में पढ़ रहे विद्यार्थी अधिक से अधिक अंक प्राप्त कर सके 

Bihar Board Class 12th History Chapter 3 Subjective Question

बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

Q 1. महाभारत का लेखक कौन था ?

Ans :- महर्षि वेद व्यास

Q2. महाभारत कालीन स्त्रियों के विभिन्न समस्या को लिखें?

Ans :- महाभारत काल में स्त्रियों की निम्नलिखित समस्या थी

  • समाज पितृ प्रधान था
  • महिलाएं उच्च शिक्षा धारण नहीं कर सकती थी
  • महाभारत में स्त्रियां पर्दा प्रथा करती थी
  • स्त्रियां युद्ध में भाग नहीं ले सकती थी

Q3. महाभारत के वर्ण व्यवस्था पर प्रकाश डालें ?

Ans :- महाभारत में वर्ण व्यवस्था को चार भागों में बांटा था ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र कहा जाता है। कि ब्राह्मण मुंह से पैदा हुआ था क्षेत्रीय शरीर के भुजाओं से पैदा हुआ था। शूद्र चरणों से पैदा हुआ था इस प्रकार महाभारत में वर्ण व्यवस्था का स्पष्टीकरण हो जाता है।

Q4. रामायण की रचना किसने की थी ?

Ans :- बाल्मीकि ने

Q5. संसार की सबसे प्राचीन भाषा कौन सा है ?

Ans :- संस्कृत

Q6. महाभारत का युद्ध कितने दिनों तक लड़ा गया था ?

Ans:- 18 दिन तक

Q7. वेदों की संख्या कितनी है ?

Ans:- वेदों की संख्या 4 है यजुर्वेद, सामवेदऋग्वेद और अथर्ववेद ।

Q8. महाभारत में लगभग कितने श्लोक हैं ?

Ans :- 100217 श्लोक हैं।

Q 9. प्राचीन भारत के वर्ण व्यवस्था पर प्रकाश डालिए ?

Ans :- प्राचीन भारत में वर्ण व्यवस्था को कई भागों में बांटा गया था कहा जाता है कि ब्राह्मण का जन्म मुंह से जबकि क्षेत्रीय का जन्म भुजाओं से शुद्र का जन्म पैरों से हुआ था इस प्रकार की वर्ण व्यवस्था प्राचीन काल में प्रचलित थी लेकिन वैदिक काल आते-आते वर्ण व्यवस्था जन्म के आधार पर ना होकर कर्म के आधार पर होने लगा। इस प्रकार का वर्ण व्यवस्था प्राचीन भारत में था।

Q10. स्त्रीधन को परिभाषित करें ?

Ans :- जब कोई स्त्री किसी से धन लेकर विवाह करती थी इसी विवाह को स्त्रीधन विवाह कहा जाता था।

बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज Subjective Question

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर 

1. बंधुत्व की अवधारणा पर प्रकाश डालते हुए आरंभिक समाज में इसकी भूमिका का वर्णन करें।

उत्तर :- बंधुत्व: आरंभिक समाज में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है बंधुत्व एक ऐसी अवधारणा है जो समानता, एकजुटता और आपसी सहयोग पर आधारित है। यह भावना लोगों को एक दूसरे के प्रति दयालु, उदार और सहायक बनाती है। बंधुत्व की भावना समाज को मजबूत और स्थायी बनाती है।

आरंभिक समाज में, बंधुत्व एक अत्यंत महत्वपूर्ण अवधारणा थी। यह लोगों को एक दूसरे के साथ जुड़ने और एक समुदाय के रूप में कार्य करने में मदद करती थी।

बंधुत्व की भूमिका:

  • सुरक्षा और सहयोग: आरंभिक समाज में, लोगों को जीवित रहने और सुरक्षित रहने के लिए एक दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता था। बंधुत्व की भावना ने लोगों को एक दूसरे की रक्षा करने और जरूरतमंदों की सहायता करने के लिए प्रेरित किया।
  • सामाजिक व्यवस्था: बंधुत्व ने लोगों को एक दूसरे के साथ सम्मान और सहयोग के साथ व्यवहार करने के लिए प्रेरित किया। इसने सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • सांस्कृतिक समृद्धि: बंधुत्व ने लोगों को एक दूसरे के साथ अपनी संस्कृति और ज्ञान को साझा करने के लिए प्रेरित किया। इसने सांस्कृतिक समृद्धि और विकास को बढ़ावा दिया।

बंधुत्व की अभिव्यक्ति:

  • परिवार: परिवार बंधुत्व की सबसे बुनियादी इकाई थी। परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम, स्नेह और सहयोग की भावना होती थी।
  • समुदाय: समुदाय के सदस्यों के बीच भी बंधुत्व की भावना होती थी। वे एक दूसरे की मदद करते थे और एक दूसरे के सुख-दुःख में भाग लेते थे।
  • धार्मिक और सामाजिक समूह: धार्मिक और सामाजिक समूह भी बंधुत्व की भावना को बढ़ावा देते थे। इन समूहों के सदस्य एक दूसरे के साथ समानता और भाईचारे की भावना से जुड़ते थे।

2. जाति व्यवस्था का उदय कैसे हुआ? ऋग्वेदिक काल में जाति व्यवस्था की विशेषताएं क्या थीं?

उत्तर :- जाति व्यवस्था का उदय और ऋग्वेदिक काल में विशेषताएं  :-

उदय:

जाति व्यवस्था का उदय एक जटिल प्रक्रिया थी जिसके पीछे कई सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक कारक थे।

  • वर्ण व्यवस्था: ऋग्वेदिक काल में, समाज को चार वर्णों में विभाजित किया गया था: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।
  • व्यवसायों का विशेषज्ञता: समय के साथ, विभिन्न वर्णों के सदस्यों ने विशिष्ट व्यवसायों में विशेषज्ञता प्राप्त करना शुरू कर दिया।
  • अंतर्जातीय विवाह: विभिन्न वर्णों के बीच अंतर्जातीय विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
  • वंशानुगत: धीरे-धीरे, वर्ण वंशानुगत हो गए, जिससे जाति व्यवस्था का जन्म हुआ।

ऋग्वेदिक काल में जाति व्यवस्था की विशेषताएं:

  • चार वर्ण: ऋग्वेद में चार वर्णों का उल्लेख मिलता है: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।
  • व्यवसायों का आधार: वर्णों का विभाजन मुख्य रूप से व्यवसायों पर आधारित था।
  • अंतर्जातीय विवाह: विभिन्न वर्णों के बीच अंतर्जातीय विवाह की अनुमति थी।
  • सामाजिक गतिशीलता: ऋग्वेदिक काल में कुछ सामाजिक गतिशीलता थी।
  • शूद्रों की स्थिति: शूद्रों को समाज में सबसे निचला स्थान दिया गया था।

ध्यान दें:

  • ऋग्वेदिक काल में जाति व्यवस्था अभी भी अपने प्रारंभिक चरण में थी।
  • इस काल में जाति व्यवस्था उतनी कठोर नहीं थी जितनी कि बाद में बन गई।
  • ऋग्वेदिक काल में कुछ सामाजिक गतिशीलता थी।

3. आरंभिक समाज में वर्गों का वर्गीकरण किस आधार पर किया जाता था? विभिन्न वर्गों के बीच संबंधों का वर्णन करें।

उत्तर :- आरंभिक समाज में वर्गीकरण कई आधारों पर किया जाता था, जैसे:

1. जाति या वंश: समाज के आरंभिक दौर में, व्यक्ति की जाति या वंश उसके स्थान-स्थिति को निर्धारित करती थी। व्यक्ति के जन्म के आधार पर उसे एक विशेष जाति में शामिल किया जाता था, और उसका समाज में स्थान उसकी जाति के अनुसार होता था।

2. व्यापार: कुछ समुदायों को उनके व्यापार या पेशे के आधार पर वर्गीकृत किया जाता था। उदाहरण के लिए, शिल्पकार, किसान, व्यापारी, राजकारण, आदि।

3. शिक्षा और विद्या: कुछ समाजों में शिक्षा और विद्या के अधिकार से उनका वर्गीकरण होता था। उन लोगों को उच्च वर्ग माना जाता था जो शिक्षा और विद्या को प्राप्त करते थे, जबकि निरक्षर या कम शिक्षित लोग निम्न वर्ग में आते थे।

4. धर्म: कुछ समाजों में धार्मिक विश्वासों या धर्म के आधार पर वर्गीकरण किया जाता था। लोगों को उनके धर्म के आधार पर अलग-अलग समूहों में विभाजित किया जाता था।

इन वर्गों के बीच संबंध अक्सर सामाजिक और आर्थिक आधारों पर निर्मित होते थे। उच्च वर्ग के लोगों को सामाजिक और आर्थिक सुख सुविधाएं प्राप्त थीं, जबकि निम्न वर्ग के लोगों को इन सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता था। इसके अलावा, विभिन्न वर्गों के लोगों के बीच सामाजिक सम्बन्ध भी अक्सर निश्चित नियमों और परंपरागत विचारधाराओं के अनुसार निर्धारित होते थे।

4. वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था में क्या अंतर है?

उत्तर :- वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था दो अलग-अलग प्रकार के सामाजिक व्यवस्थाओं का नाम हैं, जो भारतीय समाज में विभिन्न समयों और क्षेत्रों में पाए जाते थे। यहां दोनों के बीच कुछ मुख्य अंतर बताए जा रहे हैं:

1. वर्ण व्यवस्था (Varna System):

  • वर्ण व्यवस्था भारतीय समाज की एक प्राचीन व्यवस्था है जो चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) में विभाजित होती है।
  • इस व्यवस्था में व्यक्ति के जाति उसके धर्म, काम, और गुणों के आधार पर निर्धारित की जाती है।
  • वर्ण व्यवस्था धार्मिक आधार पर है, और इसमें जातिवाद की भावना नहीं होती है।

2. जाति व्यवस्था (Caste System):

  • जाति व्यवस्था भी भारतीय समाज की एक प्राचीन व्यवस्था है, जो लोगों को उनकी जन्मजात जाति के आधार पर विभाजित करती है।
  • इस व्यवस्था में व्यक्ति की जाति उसके माता-पिता की जाति के आधार पर निर्धारित की जाती है, और इसमें काम, धर्म, और गुणों का कोई बड़ा प्रभाव नहीं होता।
  • जाति व्यवस्था में जातिवाद की भावना होती है, जिससे एक जाति के लोग अन्य जातियों के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से अलग होते हैं।

संक्षेप में, वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था दोनों ही सामाजिक व्यवस्थाओं हैं, लेकिन उनके आधार, निर्धारण का तरीका, और सामाजिक प्रभाव में अंतर होता है।

5. बौद्ध धर्म और जैन धर्म ने जाति व्यवस्था और सामाजिक असमानता को चुनौती कैसे दी?

उत्तर :- बौद्ध धर्म और जैन धर्म ने जाति व्यवस्था और सामाजिक असमानता को चुनौती देकर अनेक मार्गों पर काम किया:

1. अवधारणा प्राप्तता: बौद्ध धर्म और जैन धर्म ने जाति व्यवस्था को अस्वीकार किया और उसे अवधारणा प्राप्तता के आधार पर नहीं माना। इन धर्मों में, व्यक्ति के चरित्र, कर्म, और ध्यान के आधार पर उसकी महत्वपूर्णता निर्धारित की जाती है, न कि उसकी जाति के आधार पर।

2. सामाजिक उपाधि का अस्वीकार: इन धर्मों ने सामाजिक उपाधियों और वर्ग विभाजन को अस्वीकार किया और उनका प्रचार नहीं किया। वे लोगों को समान दर्जे और समान अवसर प्रदान करने की बात करते थे।

3. समाज में सहयोग: बौद्ध और जैन समुदायों में, समाज के सभी सदस्यों को समानता और सहयोग की भावना को प्रोत्साहित किया गया। इन धर्मों के अनुयायी समुदायों में जाति विवादों और असमानता को कम किया गया और उन्होंने समाज में उत्तम समृद्धि और सामाजिक समृद्धि के लिए मिलकर काम किया।

4. शिक्षा की प्राचीनता: बौद्ध और जैन धर्मों में शिक्षा को महत्व दिया गया और विविध वर्णों और जातियों के लोगों को शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया गया। इससे सामाजिक असमानता की कुछ मात्रा कम हुई और लोगों के बीच विद्या और ज्ञान के साझेदारी का मार्ग खुला।

इन सभी कारणों से, बौद्ध धर्म और जैन धर्म ने जाति व्यवस्था और सामाजिक असमानता के खिलाफ एक अद्वितीय संदेश प्रस्तुत किया।